Shantanu Naidu एक उभरते हुए उद्यमी हैं, जो रतन टाटा के साथ अपनी गहरी दोस्ती और पेशेवर संबंधों के लिए प्रसिद्ध हैं। 2014 में टाटा समूह से जुड़ने के बाद, शांतनु ने रतन टाटा के व्यक्तिगत सहायक के रूप में काम किया, जिससे उनका रिश्ता केवल कार्यालय तक सीमित न रहकर एक गहरी मित्रता में बदल गया। दोनों का कुत्तों के प्रति प्रेम उन्हें और भी करीब ले आया, जो उनके रिश्ते को और मज़बूत बनाता है।
यह लेख शांतनु नायडू के उद्यमी प्रयासों पर केंद्रित है, जो लेट श्री रतन टाटा के सिद्धांतों और सामाजिक मूल्यों से जुड़े हुए हैं। उनके प्रोजेक्ट्स, जैसे गुडफेलोज़, यह दिखाते हैं कि कैसे शांतनु रतन टाटा के आदर्शों को अपने काम के माध्यम से आगे बढ़ा रहे हैं।
Shantanu Naidu’s Journey: From Cornell to the Tata Group
Shantanu Naidu का पूरा नाम शांतनु व्यंकतेश नायडू है | उनका जन्म 1993 में पुणे महाराष्ट्र में हुआ था | उन्होंने B.Tech in मैकेनिकल इंजीनियरिंग (2010-2014) सावित्रीबाई फुले पुणे यूनिवर्सिटी से की है और MBA in बिज़नस एडमिनिस्ट्रेशन एंड जनरल मैनेजमेंट (2016-2018) कॉर्नेल यूनिवर्सिटी New York ,US से की है |
उनका करियर टाटा एल्क्सी में एक डिज़ाइन इंजीनियर के रूप में शुरू हुआ, जहाँ उन्होंने पशु कल्याण के प्रति अपनी रुचि विकसित की। इसी रुचि के चलते उन्होंने रास्ते पे रहने वाले कुत्तों के लिए रिफ्लेक्टिव कॉलर बनाए, ताकि रात में होने वाले हादसों को रोका जा सके।
A short Inspiring Journey of Shantanu Naidu
शांतनु नायडू, जो 2014 में पुणे विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट हुए थे, टाटा समूह में एक डिज़ाइन इंजीनियर के रूप में शामिल हुए।
एक दिन जब वह ऑफिस से घर लौट रहे थे तो उन्होंने सड़क के बीचों-बीच एक कुत्ते को मरा हुआ देखा | नायडू को हमेसा से ही कुत्ते से बहुत लगाव था और उन्होंने कई कुत्तो को बचाया भी है इसलिए आवारा कुत्ते को उस हालत में देखकर वे बहुत भावुक हो गए और वही खड़ा होकर शव को सड़क के किनारे लाने के बारे में सोच रहे थे तभी एक और कार ने कुत्ते के शव को कुचल दिया ये देखकर नायडू टूट गए |
कुत्तों से प्यार करने वाले नायडू ने कुछ करने का फैसला किया। उन्होंने अपने दोस्तों की मदद से कुत्तों के लिए एक विशेष कॉलर डिज़ाइन किया, जिस पर रिफ्लेक्टर लगे थे, ताकि गाड़ियाँ दूर से कुत्तों को देख सकें। अगले ही दिन, उन्होंने और उनके दोस्तों ने सड़क के आवारा कुत्तों को ये कॉलर पहनाने शुरू कर दिए।
उनको नहीं पता था की यह काम करेगा की नहीं लेकिन जब वे अगले दिन उठे तोह उन्हें एक सन्देश मिला जिसमे कहा गया था की कालर के वजह से एक कुत्ते की जान बच गयी है |यह सुन कर उन्हें अच्छा लगा और उनकी पहल की प्रसंसा की गयी यहाँ तक की टाटा ग्रुप के कंपनी के समाचार पत्र में भी सामिल किया गया | जल्द ही कालर की मांग कई गुना बढ़ गया लेकिन फण्ड की कमी ने इस पहल को पीछे धकेल दिया |
तब उनके पिता ने उन्हें सुझाव दिया की उन्हें लेट श्री रतन टाटा जी को एक लेटर लिखना चाहिए क्यू की वे भी कुत्ते से बहुत प्यार करते है | पिता की बात सुन के वे थोडा झिझक रहे थे फिर खुद से कहा ‘क्यों नहीं?’ उसके बाद उन्होंने एक हस्तलिखित पत्र लिखा और सब कुछ भूल गए !”
शांतनु नायडू को दो महीने बाद लेट श्री रतन टाटा जी के हस्ताक्षर किये हुए एक पत्र मिला जिसने उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी। लेट श्री टाटाजी ने न केवल पहल की प्रशंसा की बल्कि उन्होंने युवा कर्मचारी (शांतनु) से मिलने की इच्छा भी व्यक्त की।
कुछ दिनों बाद वे उनसे मुंबई में उनके ऑफिस में मिले । टाटा जी ने शांतनु से कहा, ‘मैं आपके काम से बहुत प्रभावित हूँ!’ जब भी मैं इसके बारे में सोचता हूँ तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। फिर वह मुझे अपने कुत्तों को दिखाने के लिए अपने घर ले गए, और इस तरह हमारी दोस्ती शुरू हुई। उन्होंने हमारे उधम( motopaws) को फण्ड भी किया|
बाद में शांतनु Cornell University में MBA की पढाई करने के लिए भारत से चले गए लेकिन उन्होंने रतन टाटा जी से वादा किया की वे वापस लौटने पर अपना जीवन टाटा ट्रस्ट के लिए काम करने में समर्पित कर देंगे, एक अनुरोध जिसे प्रतिष्ठित उद्योगपति ने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया।
शांतनु नायडू जैसे ही अपनी MBA की पढाई करके भारत लौटे तो उन्हें रतन टाटा का फ़ोन आया और उन्होंने एक ऐसा प्रस्ताव दिया जिसे शांतनु अस्वीकार नहीं कर सके। रतन टाटा जी ने शांतनु को फ़ोन किया और कहा, ‘मेरे दफ़्तर में बहुत काम है। क्या तुम मेरा सहायक बनना चाहोगे ?’ – तो शांतनु को नायडू को समझ नहीं आया कि क्या बोले । इसलिए उन्होंने एक गहरी साँस ली और कुछ सेकंड बाद “हाँ” कह दिया!
तोह इस तरह से शांतनु नायडू की एक नयी जर्नी का राटा टाटा जी के साथ सुरुवात हुआ | जहा शांतनु नायडू की ऐज के लोग अपने लिए सही दोस्त , सही गुरु और सही तरह के बॉस खोजते है और खोजने में मुस्किल होता है वही शांतनु ने इन सभी खूबियों को एक सुपरह्यूमन रतन टाटा में पाया है | सभी लोग रतन टाटा जी को प्यार से बॉस बुलाते है लेकिन शांतनु उन्हें “मिलेनियल डंबलडोर” कहना पसंद करते है – उन्हें लगता है कि यह नाम उन पर सबसे ज़्यादा सूट करता है।
Goodfellows: Shantanu Naidu’s Compassionate Initiative
Goodfellows के पीछे शांतनु नायडू का उद्देश्य बुजुर्गों में अकेलेपन को कम करने का है और उन्हें खुशी देना है, जो अक्सर खुद को अकेला महसूस करते हैं। शंतनु नायडू के अनुसार, “अंतर-पीढ़ी की दोस्ती उतनी ही खास होती है, जितनी किसी और बंधन की होती है।” Goodfellows एक ऐसी समाज की स्थापना करने का प्र्यास कर रहा है जो बुजुर्गों के सम्मान और मूल्य को समझे।
Shantanu Naidu अपने एक साल के इस शानदार सफर में, Goodfellows बुजुर्गों और युवा ग्रेजुएट के बीच काफी लोकप्रिय हो गया है। इसकी शुरुआत के बाद से 5000 से अधिक आवेदन प्राप्त हुए हैं और 700 से अधिक बुजुर्गों को ‘goodfellows’ से जोड़ा गया है।
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